Full Ramayan Katha: संपूर्ण रामायण कथा

Full Ramayan Katha: संपूर्ण रामायण कथा

हिंदू धर्म में रामायण का एक बहुत बड़ा महत्व है जिसमें धर्म और रिश्तो की मर्यादा के बारे में बताया गया है। वैसे तो रामायण कथा बहुत बड़ी है लेकिन रामायण की कथा हमने लघु रूप में लिखी है।
रामायण महाकाव्य में 24 हजार छंद और 500 सर्ग हैं जो कि 7 खंड में है।

रामायण की इस कथा में हमें राम और सीता की अमर प्रेम की कहानी देखने को मिलती है। रामायण में प्रमुख सात कांड है जिसमें हमें भक्ति कर्तव्य रिश्ते धर्म को सही मायने में देखने को मिलता है।

Full Ramayan Katha
Sri Ramayan - Ram Katha

रामायण में प्रमुख सात कांड

1. बालकाण्डम्
2. अयोध्याकाण्ड
3. अरण्यकाण्ड
4. किष्किन्धाकाण्ड
5. सुन्दरकाण्डम्
6. युद्धकाण्डम्
7. उत्तरकाण्डम्

बालकांड

उसे समय अयोध्या के राजा दशरथ हुआ करते थे जिनकी तीन रानियां थी कौशल्या, कैकई, सुमित्रा। राजा दशरथ ने अपने गुरु वशिष्ठ की बात मानकर उन्होंने एक यज्ञ कराया जिसका नाम था पुत्र कामेष्टि यज्ञ उसे यज्ञ के फलस्वरूप राजा दशरथ को चार पुत्र प्राप्त हुए। माता कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकई से भारत और सुमित्रा माता से शत्रुघ्न और लक्ष्मण जी हुए।

एक बार गुरु विश्वामित्र राजा दशरथ जी के पास आए और उन्होंने बताया कि उनके और मुनियों के यज्ञ को असुर कैसे सत्यानाश कर रहे हैं और राजा दशरथ से उन्होंने सहायता मांगी। उसे समय भगवान राम की उम्र 16 वर्ष की थी। राजा दशरथ ने गुरु विश्वामित्र को अपनी सेना देने के लिए कहा लेकिन विश्वामित्र जी ने राम और लक्ष्मण का इस कार्य के लिए चयन किया। राम और लक्ष्मण ने इस कार्य को आदर से मानकर कई राक्षसों का अंत किया जिसके फलस्वरूप उन्हें ऋषि विश्वामित्र ने कई दिव्य अस्त्र प्रदान किये।

उधर सीता जी के जन्म के बारे में यह कहा जाता है कि एक बार मिथिला के राजा जनक जिनका कोई संतान नहीं थी और वह बहुत दुखी थे। ऋषियों के कहने पर राजा जनक ने अपने राज्य के खेत में हल चलाना शुरू किया। हल चलते समय उन्हें एक धातु से टकराने की आवाज़ आई। जब राजा जनक ने देखा तो उन्हें सित के कलश में एक कन्या जमीन में गड़ी हुई मिली। राजा जनक ने भगवान का वरदान समझ कर उसे कन्या को अपने पास रख लिया और वह उसको बहुत स्नेह करने लगे बाद में उसका नाम सीता रखा सीता जी बहुत गुणवान एवं रूपवान थी
उधर सीता जी के जन्म के बारे में यह कहा जाता है कि एक बार मिथिला के राजा जनक जिनका कोई संतान नहीं थी और वह बहुत दुखी थे। ऋषियों के कहने पर राजा जनक ने अपने राज्य के खेत में हल चलाना शुरू किया। हल चलते समय उन्हें एक धातु से टकराने की आवाज़ आई। जब राजा जनक ने देखा तो उन्हें सित के कलश में एक कन्या जमीन में गड़ी हुई मिली। राजा जनक ने भगवान का वरदान समझ कर उसे कन्या को अपने पास रख लिया और वह उसको बहुत स्नेह करने लगे बाद में उसका नाम सीता रखा सीता जी बहुत गुणवान एवं रूपवान थी
राम जी और सीता जी का विवाह

एक बार सीता जी को राजा जनक ने शिव धनुष उठाते हुए देख लिया तो उन्होंने शर्त रखी कि जो भी कोई शिव धनुष को जब सीता विवाह योग्य हुई तब राजा जनक अपने प्रिय पुत्री सीता के लिए उनका स्वयंवर रखने का निश्चय किया| राजा जनक ने सीता के स्वयंवर में शिव धनुष को उठाने वाले और उस पर प्रत्यंचा चाहने वाले से अपनी प्रिय पुत्री सीता से विवाह करने की शर्त रखी।सीता के गुण और सुंदरता की चर्चा पहले से ही चारों तरफ फैल चुकी थी तो सीता के स्वयंवर की खबर सुनकर बड़े-बड़े राजा सीता स्वयंवर में भाग लेने के लिए आने लगे।

ऋषि विश्वामित्र भी राम और लक्ष्मण के साथ सीता स्वयंवर को देखने के लिए राजा जनक के नगर मिथिला पहुंचे| शर्त के अनुसार बहुत सारे राजाओं ने शिव धनुष को उठाने की कोशिश की लेकिन कोई भी धनुष को हिला भी नहीं पा रहा था उठाना तो बहुत दूर की बात है, यह सब देख कर राजा जनक चिंतित हो गए। तब ऋषि विश्वामित्र ने राजा जनक की चिंता दूर करते हुए अपने शिष्य राम को उठने की अनुमति दी, प्रभु राम अपने गुरु को प्रणाम कर उठे और उन्होंने उस धनुष को बड़ी सरलता से उठा कर जब उस पर प्रत्यंचा चलाने लगे तो धनुष टूट गया।
Full Ramayan Katha
Dhanush Bhang
राजा जनक शर्त के अनुसार प्रभु श्रीराम से सीता का विवाह करने का निश्चय किया और साथ ही अपनी अन्य पुत्रियों का विवाह भी राजा दशरथ के पुत्रों से करवाने का उन्होंने विचार किया।
Full Ramayan Katha

अयोध्या कांड कथा Ayodhya Kanda of Ramayan

राम और सीता एवं उनके तीनों भाइयों के विवाह को 12 वर्ष बीत गए थे और अब राजा दशरथ भी वृद्ध हो गए थे| अपने बाद वह अपने बड़े बेटे राम को अयोध्या के सिंहासन पर बिठाना चाहते थे।
तब एक शाम राजा दशरथ की दूसरी पत्नी का कैकई अपनी एक चतुर दासी मंथरा के बहकावे में आकर राजा दशरथ से दो वचन मांगे।। “जो राजा दशरथ ने कई वर्ष पहले कैकई द्वारा जान बचाने के लिए कैकई को दो वचन देने का वादा किया था”।

कैकई ने राजा दशरथ से अपने पहले वचन के रूप में राम को 14 वर्ष का वनवास और दूसरे वचन के रूप में अपने पुत्र भरत को अयोध्या के राज सिहासन पर बैठाने की बात कही।
अपने दिल पर पठार रखते हुये राजा दशरथ मे अपने प्रिय पुत्र राम को बुलाकर उन्हें 14 वर्ष के लिए वनवास जाने को कहा।
राम ने अपने पिता राजा दशरथ का बिना कोई विरोध किए उनका आदेश स्वीकार कर लिया।
जब सीता और लक्ष्मण को प्रभु राम के वनवास जाने के बारे में पता चला तो उन्होंने भी राम के साथ वनवास जाने का आग्रह किया, और इस प्रकार राम सीता और लक्ष्मण अयोध्या से वन जाने के लिए निकल गए।

अपने प्रिय पुत्र राम के वन जाने से दुखी होकर राजा दशरथ ने अपने प्राण त्याग दिए।
इस दौरान भरत जो अपने मामा के यहां (ननिहाल) गए हुए थे, वह अयोध्या की घटना सुनकर बहुत ही ज्यादा दुखी हुए।
भरत ने अपनी माता कैकई को अयोध्या के राज सिंहासन पर बैठने से मना कर दिया और वह अपने भाई राम को ढूंढते हुए वन में चले गए। वन में जाकर भरत राम लक्ष्मण और सीता से मिले और उनसे अयोध्या वापस लौटने का आग्रह किया फिर तभी राम ने अपने पिता के वचन का पालन करते हुए अयोध्या वापस नहीं लौटने का प्रण किया।

तब भरत ने अपने बड़े भाई यानि भगवान राम की चरण पादुका अपने साथ ले कर अयोध्या वापस लौट आए, और राम की चरण पादुका को अयोध्या के राजसिंहासन पर रख दिया और भरत ने बोला कि वो उनके एक दास बनकर आयोध्य को उनके वापस आने तक चलाएँगे।

तब भरत ने अपने बड़े भाई यानि भगवान राम की चरण पादुका अपने साथ ले कर अयोध्या वापस लौट आए, और राम की चरण पादुका को अयोध्या के राजसिंहासन पर रख दिया और भरत ने बोला कि वो उनके एक दास बनकर आयोध्य को उनके वापस आने तक चलाएँगे।

अरण्यकांड: Full Ramayan Katha

भगवान राम के वनवास को 13 वर्ष बीत गए थे और वनवास का अंतिम वर्ष चल रहा था| भगवान राम, सीता और लक्ष्मण गोदावरी नदी के किनारे जा रहे थे, गोदावरी के निकट एक जगह सीता जी को बहुत पसंद आई उस जगह का नाम था पंचवटी।
तब भगवान राम अपनी पत्नी की भावना को समझते हुए उन्होंने वनबास का शेष समय पंचवटी में ही बिताने का निर्णय लिया और वहीं पर वह तीनों (राम, लक्ष्मण और सीता) कुटिया बनाकर रहने लगे।

पंचवटी के जंगलों में ही एक दिन शूर्पणखा नाम की राक्षसी औरत वहाँ आई और उसका दिल भगवान राम पर आ गया और वो उनको अपने रूप रंग से लुभाना चाहती थी, जिसमें वह असफल रही। जब उसको ज्ञात हुआ कि राम कि पत्नी सीता है तो उसने सीता को मारने का प्रयास किया, तब लक्ष्मण ने सूर्पनखा को रोकते हुए उसके नाक और कान काट दिए। जब इस बात की खबर शूर्पणखा के राक्षस भाई खर को पता चली तो वह अपने राक्षस साथियों के साथ राम, लक्ष्मण सीता जिस पंचवटी में कुटिया बनाकर रह रहे थे वहां पर उसने हमला कर दिया, भगवान राम और लक्ष्मण ने खर और उसके सभी राक्षसों का वध कर दिया।

रामायण सीता हरण की कहानी
जब इस घटना की खबर सूर्पनखा के दूसरे भाई रावण तक पहुंची तो उसने राक्षस मारीचि की मदद से भगवान राम की पत्नी सीता का अपहरण करने की योजना बनाई। रावण के कहने पर राक्षस मरीचि ने स्वर्ण मृग (बकड़ी का बच्चा) बनकर सीता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। स्वर्ण मृग की सुंदरता पर मोहित होकर सीता ने राम को उसे पकड़ने को भेज दिया, भगवान राम रावण की इस योजना से अनभिज्ञ थे क्योंकि भगवान राम तो अंतर्यामी थे, फिर भी अपनी पत्नी सीता की इच्छा को पूरा करने के लिए वह उस स्वर्ण मृग के पीछे जंगल में चले गए और माता सीता की रक्षा के लिए अपने भाई लक्ष्मण को बोल दिए।

कुछ समय बाद जब भगवान राम ने उस मृग को तीर मार कर पकड़ने की कोशिश करी और तब मरते मरते उस मृग ने भगवान राम की करुणा भरी मदद की आवाज में “सीते चिल्लाया” जिसे सुनते ही माता सीता ने लक्ष्मण को भगवान राम की सहायता के लिए जबरदस्ती भेजने लगी। लक्ष्मण ने माता सीता को समझाने की बहुत कोशिश की कि भगवान राम अजय हैं, और उनका कोई भी कुछ नहीं कर सकता, लेकिन फिर भी सीता माता नहीं मानी और उन्होने लक्ष्मण को वचन देकर भगवान राम की सहायता करने के लिए लक्ष्मण को आदेश दे दिया।
लक्ष्मण माता सीता की आज्ञा मानना तो चाहते थे लेकिन वह सीता को कुटिया में अकेला नहीं छोड़ना चाहते थे इसलिए लक्ष्मण कुटिया से जाते वक्त कुटिया के चारों और एक लक्ष्मण रेखा बनाई, ताकि कोई भी उस रेखा के अंदर नहीं प्रवेश कर सके और माता सीता को इस रेखा से बाहर नहीं निकलने का आग्रह किया। फिर लक्ष्मण भगवान राम की खोज में निकल पड़े, इधर रावण जो घात लगाए बैठा था जब उसने देखा की रास्ता साफ हो गया है तो वह एक साधु का वेश बनाकर माता सीता की कुटिया के आगे पहुंच गया और भिक्षा मांगने लगा। माता सीता रावण जो कि एक साधु के वेश में था उसकी कुटिलता को नहीं समझ पाई और उसके भ्रमजाल में आकर लक्ष्मण की बनाई गई लक्ष्मण रेखा के बाहर कदम रख दिया और रावण माता सीता को बलपूर्वक उठाकर ले गया।
जब रावण सीता को बलपूर्वक अपने पुष्पक विमान में ले जा रहा था तो जटायु नाम का गिद्ध ने उसे रोकने की कोशिश की, जटायु ने माता सीता की रक्षा करने का बहुत प्रयास किया और जिसमें वह प्राणघातक रूप से घायल हो गया। रावण सीता को अपने पुष्पक विमान से उड़ा कर लंका ले गया और उन्हें राक्षसी की कड़ी सुरक्षा में लंका के अशोक वाटिका में डाल दिया। फिर रावण ने माता सीता के सामने उनसे विवाह करने की इच्छा प्रकट की, लेकिन माता सीता अपने पति भगवान राम के प्रति समर्पण होने के कारण रावण से विवाह करने के लिए मना कर दिया।
इधर भगवान राम और लक्ष्मण माता सीता के अपहरण के बाद उनकी खोज करते हुए जटायु से मिले, तब उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी सीता को लंकापति रावण उठाकर ले गया है। तब वह दोनों भाई सीता को बचाने के लिए लंका की ओर निकल पड़े, भगवान राम और लक्ष्मण जब माता सीता की खोज कर रहे थे तब उनकी मुलाकात राक्षस कबंध और परम तपस्वी साध्वी शबरी से हुई। उन दोनों ने उन्हें सुग्रीव और हनुमान तक पहुंचाया और सुग्रीव से मित्रता करने की सुझाव दिया।

किष्किंधा कांड

किसकिन्धा के राजा सुग्रीव की वानर सेना हनुमान में मंत्री थे। रा हनुमान जी राम जी से पहली बार ऋषि मुख पर्वत पर मिले थे जहाँ सुग्रीव और उनके साथी रहते थे। सुग्रीव के भाई बाली ने उससे उसका राज्य भी छीन लिया और उसकी पत्नी को भी बंदी बना कर रखा था।

राम जी ने सुग्रीव को अपना मित्र बना लिया था। जब रावण पुष्पक विमान में सीता माता को ले जा रहा था तब माता सीता ने निशानी के लिए अपने अलंकर फैक दिए थे वो सुग्रीव की सेना के कुछ वानरों को मिला था। जब उन्होंने श्री राम को वो अलंकर दिखाये तो राम और लक्ष्मण के आँखों में आंसू आगये।
श्री राम ने बाली का वध करके सुग्रीव को किसकिन्धा का राजा दोबारा बना दिया। सुग्रीव ने भी मित्रता निभाते हुए राम को वचन दिया की वो और उनकी वानर सेना भी सीता माता को रावन के चंगुल से छुडाने के लिए पूरी जी जान लगा देंगे।

वानर सेना Monkey Army

उसके बाद हनुमान, सुग्रीव, जामवंत, ने मिल कर सुग्रीव की वानर सेना का नेतृत्व किया और चारों दिशाओं में अपनी सेना को भेजा। सभी दिशाओं में ढूँढने के बाद भी कुछ ना मिलने पर ज्यादातर सेना वापस लौट आये।
दक्षिण की तरफ हनुमान एक सेना लेकर गए जिसका नेतृत्व अंगद कर रहे थे। जब वे दक्षिण के समुंद तट पर पहुंचे तो वे भी उदास होकर विन्द्य पर्वत पर इसके विषय में बात कर रहे थे।

वहीँ कोने में एक बड़ा पक्षी बैठा था जिसका नाम था सम्पाती। सम्पति वानरों को देखकर बहुत खुश हो गया और भगवान का शुक्रिया करने लगा इतना सारा भोजन देने के लिए। जब सभी वानरों को पता चला की वह उन्हें खाने की कोशिश करने वाला था तो सभी उसकी घोर आलोचना करने लगे और महान पक्षी जटायु का नाम लेकर उसकी वीरता की कहानी सुनाने लगे। जैसे ही जटायु की मृत्यु की बात उसे पता चला वह ज़ोर-ज़ोर से विलाप करने लगा। उसने वानर सेना को बताया की वो जटायु का भाई है और यह भी बताया की उसने और जटायु ने मिलकर स्वर्ग में जाकर इंद्र को भी युद्ध में हराया था। उसने यह भी बताया की सूर्य की तेज़ किरणों से जटायु की रक्षा करते समय उसके सभी पंख भी जल गए और वह उस पर्वत पर गिर गया। सम्पाती ने वानरों से बताया कि वह बहुत ज्यादा जगहों पर जा चूका है और उसने यह भी बताया की लंका का असुर राजा रावण ने सीता को अपहरण किया है और उसी दक्षिणी समुद्र के दूसरी ओर उसका राज्य है।
लंका की ओर हनुमान की समुद्र यात्रा Hanuman Lanka Journey

जामवंत ने हनुमान के सभी शक्तियों को ध्यान दिलाते हुए कहा की हे हनुमान आप तो महा ज्ञानी, वानरों के स्वामी और पवन पुत्र हैं। यह सुन कर हनुमान का मन हर्षित हो गया और वे समुंद्र तट किनारे स्तिथ सभी लोगों से बोले आप सभी कंद मूल खाकर यही मेरा इंतज़ार करें जब तक में सीता माता को देखकर वापस ना लौट आऊं। ऐसा कहकर वे समुद्र के ऊपर से उड़ते हुए लंका की ओर चले गए।
रास्ते में जाते समय उन्हें सबसे पहले मेनका पर्वत आये। उन्होंने हनुमान जी से कुछ देर आराम करने के लिए कहा पर हनुमान ने उत्तर दिया – जब तक में श्री राम जी का कार्य पूर्ण ना कर लूं मेरे जीवन में विश्राम की कोई जगह नहीं है और वे उड़ाते हुए आगे चले गए।
देवताओं ने हनुमान की परीक्षा लेने के लिए सापों की माता सुरसा को भेजा। सुरसा ने हनुमान को खाने की कोशिश की पर हनुमान को वो खा ना सकी। हनुमान उसके मुख में जा कर दोबारा निकल आये और आगे चले गए।
समुंद्र में एक छाया को पकड़ कर खा लेने वाली राक्षसी रहती थी। उसने हनुमान को पकड़ लिया पर हनुमान ने उसे भी मार दिया।

हनुमान लंका दहन : Full Ramayan Katha

समुद्र तट पर पहुँचने के बाद हनुमान एक पर्वत के ऊपर चढ़ गए और वहां से उन्होंने लंका की और देखा। लंका का राज्य उन्हें दिखा जिसके सामने एक बड़ा द्वार था और पूरा लंका सोने का बना हुआ था।
हनुमान ने एक छोटे मछर के आकार जितना रूप धारण किया और वो द्वार से अन्दर जाने लगे। उसी द्वार पर लंकिनी नामक राक्षसी रहती थी। उसने हनुमान का रास्ता रोका तो हनुमान ने एक ज़ोर का घूँसा दिया तो निचे जा कर गिरी। उसने डर के मारे हनुमान को हाथ जोड़ा और लंका के भीतर जाने दिया।

Full Ramayan Katha

हनुमान ने माता सीता को महल के हर जगह ढूँढा पर वह उन्हें नहीं मिली। थोड़ी दे बाद ढूँढने के बाद उन्हें एक ऐसा महल दिखाई दिया जिसमें एक छोटा सा मंदिर था एक तुलसी का पौधा भी। हनुमान जी को यह देखकर अचंभे में पड गए औए उन्हें यह जानने की इच्छा हुई की आखिर ऐसा कौन है जो इन असुरों के बिच श्री राम का भक्त है।
यह जानने के लिए हनुमान ने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और उन्हें पुकारा। विभीषण अपने महल से बाहर निकले और जब उन्होंने हनुमान को देखा तो वो बोले – हे महापुरुष आपको देख कर मेरे मन में अत्यंत सुख मिल रहा है, क्या आप स्वयं श्री राम हैं? 

हनुमान ने पुछा आप कौन हैं? विभीषण ने उत्तर दिया – मैं रावण का भाई विभीषण हूँ। यह सुन कर हनुमान अपने असली रूप में आगए और श्री रामचन्द्र जी के विषय में सभी बातें उन्हें बताया। विभीषण ने निवेदन किया- हे पवनपुत्र मुझे एक बार श्री राम से मिलवा दो। हनुमान ने उत्तर दिया – मैं श्री राम जी से ज़रूर मिलवा दूंगा परन्तु पहले मुझे यह बताये की मैं जानकी माता से कैसे मिल सकता हूँ?

सुंदरकाण्ड अध्याय – Full Story Of Ramayan

माता सीता के बारे में खबर मिलते ही हनुमान जी ने अपना विशाल रूप धारण किया और विशाल समुद्र को पार कर लंका पहुंच गए।
हनुमान जी लंका पहुंच कर वहां माता सीता की खोज शुरू कर दी| लंका में बहुत खोजने के बाद हनुमान को सीता अशोक वाटिका में मिली।
जहां पर रावण के बहुत सारी राक्षसी दासियां माता सीता को रावण से विवाह करने के लिए बाध्य कर रही थी| सभी राक्षसी दासियों के चले जाने के बाद हनुमान माता सीता तक पहुंचे और उनको भगवान राम की अंगूठी दे कर अपने राम भक्त होने का पहचान कराया।

हनुमान जी ने माता सीता को भगवान राम के पास ले जाने को कहा, लेकिन माता सीता ने यह कहकर इंकार कर दिया कि भगवान राम के अलावा वह किसी और नर को स्पर्श करने की अनुमति नहीं देगी, माता सीता ने कहा कि प्रभु राम उन्हें खुद लेने आएंगे और अपने अपमान का बदला लेंगे।
फिर हनुमान जी माता सीता से आज्ञा लेकर अशोक वाटिका में पेड़ों को उखाड़ना और तबाह करना शुरू कर देते हैं|
इसी बीच हनुमान जी रावण के 1 पुत्र अक्षय कुमार का भी वध कर देते हैं।

तब रावण का दूसरा पुत्र मेघनाथ हनुमान जी को बंदी बनाकर रावण के समक्ष दरबार में हाजिर करता है| हनुमान जी रावण के दरबार में रावण के समक्ष भगवान राम की पत्नी सीता को छोड़ने के लिए रावण को बहुत समझाते हैं।
रावण क्रोधित होकर हनुमान जी की पूंछ में आग लगाने का आदेश देता है, हनुमान जी की पूंछ में आग लगते हैं वह उछलते हुए एक महल से दूसरे महल, एक छत से दूसरी छत पर जाकर पूरी लंका नगरी में आग लगा देते हैं।
वहाँ से वापस आने के लिए वह फिर से विशाल रूप धारण कर किष्किंधा पहुंच जाते हैं, वहां पहुचकर हनुमान जी भगवान राम और लक्ष्मण को माता सीता की सारी सूचना देते हैं।

लंका कांड

श्री राम ने अपनी सेना के साथ समुद्र किनारे डेरा डाला। जब इस बात का पता रावण की पत्नी मंदोदरी को पता चला तो वो घबरा गयी और उसने रावण को बहुत समझाया पर वह नहीं समझा और सभा में चले गया।
रावण के भाई विभीषण ने भी रावण को सभा में समझाया और सीता माता को समान्पुर्वक श्री राम को सौंप देने के लिए कहा परन्तु यह सुन कर रावण क्रोधित हो गया और अपने ही भाई को लात मार दिया जिसके कारण विभीषण सीढियों से नीचे आ गिरे। विभीषण ने अपना राज्य छोड़ दिया और वो श्री राम के पास गए। राम ने भी ख़ुशी के साथ उन्हें स्वीकार किया और अपने डेरे में रहने की जगह दी। आखरी बार श्री राम ने बाली पुत्र अंगद कुमार को भेजा पर रावण तब भी नहीं माना।

युद्ध आरंभ हुआ The War Begins

श्री राम और रावण की सेना के बिच भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में लक्ष्मण पर मेघनाद ने शक्ति बांण से प्रहार किया था जिसके कारण हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने के लिए हिमालय पर्वत गए। परन्तु वे उस पौधे को पहेचन ना सके इसलिए वे पूरा हिमालय पर्वत ही उठा लाये थे। यहाँ तक की रावण के भाई कुंभकरण जैसे महारथी असुर को भी भगवान राम ने अपने बांण से मार डाला।

इस युद्ध में रावण की सेना के श्री राम की सेना प्रसत कर देती है और अंत में श्री राम रावण के नाभि में बाण मार कर उसे मार देते हैं और सीता माता को छुड़ा लाते हैं। श्री राम विभीषण को लंका का राजा बनाते देते हैं। परन्तु राम माता सीता से मिलने से पूर्व उनकी अग्नि परीक्षा लेते हैं। उसके बाद श्री राम, सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपने राज्य 14 वर्ष के वनवास से लौटते हैं।
इस युद्ध में रावण की सेना के श्री राम की सेना प्रसत कर देती है और अंत में श्री राम रावण के नाभि में बाण मार कर उसे मार देते हैं और सीता माता को छुड़ा लाते हैं। श्री राम विभीषण को लंका का राजा बनाते देते हैं। परन्तु राम माता सीता से मिलने से पूर्व उनकी अग्नि परीक्षा लेते हैं। उसके बाद श्री राम, सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपने राज्य 14 वर्ष के वनवास से लौटते हैं।

उत्तरकाण्डम् – Full Ramayan Katha

दोस्तों उत्तरकांड महर्षि वाल्मीकि की वास्तविक कहानी का वाद का अंश माना जाता है| इस कांड में भगवान राम के राजा बनने के बाद भगवान राम अपनी पत्नी माता सीता के साथ सुखद जीवन व्यतीत करते हैं।
कुछ समय बाद माता सीता गर्भवती हो जाती हैं, लेकिन जब अयोध्या के वासियों को माता सीता की अग्नि परीक्षा की खबर मिलती है तो आम जनता और प्रजा के दबाव में आकर भगवान राम अपनी पत्नी सीता को अनिच्छा से वन भेज देते हैं।

लव-कुश कांड

वही माता सीता दो पुत्रों को जन्म देती हैं जिनका नाम लव और कुश दिया गया। लव और कुश ने महर्षी वाल्मीकि से पूर्ण रामायण का ज्ञान लिया। वे दोनों बालक पराक्रमी और ज्ञानी थे।

अश्वमेध यज्ञ Ashvamedha Yagya

श्री राम ने चक्रवर्ती सम्राट बनने और अपने पापों से मुक्त होने के लिए अस्वमेध यज्ञ किया। यह यज्ञ करने का सुझाव उनके छोटे भाई लक्ष्मण ने दिया था। इस यज्ञ में एक घोड़े को स्वछन्द रूप से छोड़ा जाता था। वह घोडा जितना ज्यादा क्षेत्र तक जाता था उसे राज्ये में सम्मिलित कर दिया जाता था। इस यज्ञ को पत्नी के बिना नहीं हो सकता था इसलिए श्री राम ने माता सीता का स्वर्ण मूर्ति भी बनवाया था।
जब श्री राम का घोडा स्वछन्द रूप से छोड़ा गया तब वह भी एक राज्य से दुसरे राज्य में गया। जब वह घोडा महर्षि वाल्मीकि के अस्राम के पास पहुंचा तो लव कुश ने उसकी सुन्दरता देखकर उसे पकड़ लिया। जब राम को पता चला तो उन्होंने अपनी सेना को भेजा परन्तु लव-कुश से युद्ध में सब हार गए। जब राम वहां पहुंचे तो उन्होंने उन बालकों से पुछा की वह किसके पुत्र हैं। तब लव-कुश ने माता-सीता का नाम लिया।
जब राम ने यह सुना तो तू उन्होंने बताया की वह उनके पिता हैं। यह सुन कर लव-कुश भी बहुत कुश हुए और राम से गले मिल गए। उसके बाद वे माता सीता से आश्रम जा कर मिले। उसके बाद श्री राम, माता सिट और लव-कुश को लेकर अयोध्या लौट आये।

Scroll to Top